देखे है मैंने टूटते तारे को, वो भी संवरने लगा है,
कब समजेगा दिल, एक घाव पे मचलने लगा है,
कब समजेगा दिल, एक घाव पे मचलने लगा है,
उल्फत किस पे नहीं आती,खुदा भी बाकात नहीं,
सुबह तक इंतज़ार नहीं,रात देख तड़पने लगा है,
सुबह तक इंतज़ार नहीं,रात देख तड़पने लगा है,
अश्क की छाँव में बैठके,निकलेगी नहीं जिन्दगी,
फिर हसने हसाने से परहेज क्यों करने लगा है?
फिर हसने हसाने से परहेज क्यों करने लगा है?
कफ़स के परिंदे भी तो उड़ सकते है अंजुमन में,
और चलते चलते तू थक हारके ठहरने लगा है,
और चलते चलते तू थक हारके ठहरने लगा है,
कली न बन सकती फूल कभी भी,गर डर होता,
बेफिझुल तू बिना खिले जिन्दगी से डरने लगा है !!!
बेफिझुल तू बिना खिले जिन्दगी से डरने लगा है !!!
नीशीत जोशी 12.07.13
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